Monday, June 08, 2009

जब

ढलेगी रोशनी शमा-ए-दिल आजाद होगी
इसी बादल के साये में वो मुलाक़ात होगी

हमारी हसरतों को पर लगेंगे उल्फत के
हर एक आरजू मचलने को बेताब होगी

हवा जो छू के जायेगी तेरे रुखसारों को
मेरी हलकी सरगोशी भी उसके साथ होगी

ये चाँद घोलेगा मदहोशी स्याह पानी में
फिर आधे आधे से लफ्जों में अपनी बात होगी

तेरी हंसी का नूर बिखरेगा हर जानिब
इसी नशे में तेरी रूह भी शादाब होगी

शब-ए-मक़सूद की तलाश मुकम्मल होगी
मेरी जुबां से इक नयी ग़ज़ल ईजाद होगी

मैं सोच लूँगा अपनी आखिरी तमन्ना भी
भला दिल को भी धड़कने की कुछ याद होगी?

"कुबूल" है मुझे भी इंतज़ार थोडा सा
की खुदा ने सुनी किसी की तो फरियाद होगी

रुखसार- Cheek; जानिब - side, towards; शादाब - Fresh / Rejuvenate.

बेकरार

Life at IIT. Life with learnings, fun, dreams, freedom. And precious moments.
Learnt some things there. Left much more undiscovered.
Some lines I scribbled during a train journey from Kharagpur to Kolkata during last days of my college. I think it was 10th May 2008. Finally publishing it.
First couplet is from a song by Gulzar Saahab.

रुके रुके से क़दम, रुक के बार बार चले,
करार ले के तेरे दर से बेकरार चले।

कि कल तक इसी पल के इंतज़ार में थे हम,
अब आज चाह है कि और इंतज़ार चले।

इसी उम्मीद से कि कल ज़रा बेहतर होगा,
हम आज भर को सुकूँ मांगने उधार चले।

मेरा हर एक ख्वाब ज़िन्दगी में उतरेगा
यही खुशफहमी चले और ये खुमार चले

मैं एक रात मांगता हूँ तुझसे ऐ मौला,
उन्ही ख़्वाबों का सिलसिला फ़िर एक बार चले।