Friday, August 10, 2012

नूर

A lot of images delve in the heart. A handful of them melt and flow into poetry:

जिस पे हो जाए मेहरबाँ बेवजह-ओ-बेखबर 
कायनातों की क़ज़ा अटकी तेरी मुस्कान पर 



"   इक नज़र तूने जो डाली पानियों के शोर पे 
साज़ बन बैठी हैं लहरें तेरा चेहरा चूमकर    "




अक्स तेरे चेहरे का मेरी तबस्सुम हो तो हो 
कैसे हंस पाएगी तेरे बिन बता मेरी नज़र 


आसमां को डोरियों से बाँध के रखते हो अब 
और नज़र भी फेर लो तो ये ज़मीं जाए किधर 

बहे सारी उम्र तेरे चेहरे से ऐसे ही नूर 
रोशनाई सी रहें राहें हमारी ता-सफ़र 


 कायनात - world, क़ज़ा - fate, तबस्सुम - smile