Friday, February 01, 2008

मुलाक़ात

दिखने लगा छुपा हुआ वो प्यार भी हल्का सा,
आंखो में छलक आया है इक़रार भी हल्का सा

बस ख़त्म हो चला था, जितना था सब्र मन में,
बहुत हुआ लगा ये इंतज़ार भी हल्का सा

तेरे नूर का यही रंग, तेरे अक्स को तलब था,
चढ़ने को रूह पर मेरी, तैयार भी हल्का सा

सोचा था कि इतना बेहतरीन होगा ये पल,
खुद पर से हट रह है इख्तियार भी हल्का सा

ख़ुशी कहूं, या क्या कहूं, एहसास को मैं अपने,
लगता है मेरे ख़्वाबों के ये पार भी हल्का सा

पर ये तो बस आगाज़ ही हुआ है उड़ने का,
होने का ख़त्म, हो इंतज़ार भी हल्का सा

हर रोज़ नए आसमां मिलें एहसासों को,
बुझ गयी प्यास, लगे इक बार भी हल्का सा

"कुबूल" हो दुआ मेरी बस एक मेरे मौला,
मांगू नहीं, तुझे जो नागवार भी हल्का सा