Thursday, August 11, 2011

सोच

ये दिल क्यूँ सोच में दौड़े यहाँ वहाँ के लिए
मेरे साहिब की सोच सारे ही जहां के लिए

अगर ये गुल खिलें इक दूसरे के खिलने से
और एहतियाज क्या हसीन गुलिस्ताँ के लिए

तेरे ख्यालों में सबसे अज़ीम होगा ये
हर इंसान यूँही सोचे हर इन्सां के लिए
 
मेरे कदमों को हो ख्याल फ़क़त चलने का
सोच राहों की छोड़नी है रहनुमां के लिए

"कुबूल" हो सके मुझे हद-ए-मीनार-ए-मसीद 
 न आरज़ू हो किसी और आसमां के लिए

एहतियाज- requirement, अज़ीम- highest, हद-ए-मीनार-ए-मसीद - Zenith of the minaret in the mosque


Monday, August 08, 2011

हाल-ए-दिल

यूं तो मुरशद पे ही कुर्बान जुबां होती है
दिल-ए-ग़मगीन तेरी चाह कहाँ होती है

कभी निगाह में बस हसरतों का मजमा और
कभी तस्लीम तकाज़े का निशाँ होती है
 
तू भी होता है बेसुकून सा तन्हाई में
मेरी भी बंदगी शिकवों में बयाँ होती है

 है ये मालूम कि खालिक है निगेहबां फिर भी
 तेरी निगाह-ए-पाक-ओ-हया कहाँ होती है

ख्याल रहता है फैलाने का दामन को पर
सुराख कितने है ये होश कहाँ होती है

अमीर दुनिया में होने की चाह जिसको है
बिके इस दर पे वो औकात कहाँ होती है

तुझे सुनाया हाल-ए-दिल तुझे "कुबूल" भी हो
तेरे एहसास की हर सांस अज़ाँ होती है

 मजमा- gathering, तस्लीम- Salutation / respect, तकाज़े- demands, निगेहबां- is watching, निगाह-ए-पाक-ओ-हया - pious vision and dignity, अज़ाँ - call for prayer.

Thursday, May 19, 2011

मुन्तज़िर

तसव्वुर पर सिलवटें हैं, तेरे आने का सपना भी
हैं कबसे मुन्तज़िर आंखें, तो लाजिम है बरसना भी

समेटी याद बस तब तक, तेरी क़ुरबत मिली जब तक
बड़ा मुश्किल हुआ तबसे, कोई पल साथ रखना भी

मेरी आँखें भी अब मेरी तरह  ही होश में हैं जो
तेरा दीदार चलता है, नहीं रुकता तरसना भी

अभी तक मेरे दामन में तेरे आंसू सलामत हैं
है इक बारिश में नामुमकिन लहू के दाग बहना भी

तेरे चेहरे को हाथों की लकीरों में तलाशा बस
अजब कि जानता है ये दुआ के लफ्ज़ बुनना भी

ये अच्छा है खुदा पे हक फ़क़त ऐतबार का ही है
कि क्यूँकर आजमायें जब, नहीं आसाँ समझना भी