Tuesday, November 27, 2012

यकीं

मुराद-ए-यकीं सी कोई मुराद नहीं है
पूरा है जो हमेशा कम-ओ-ज़ाद नहीं है

तेरे हर इक पयाम को सजदे ही किये हैं
हर्फों का इल्म है कि नहीं याद नहीं है


जब जब भी ये एहसास मिला है कि तू मिला है
देखा है लबों पे कोई फ़रियाद नहीं है


मुझको बना ग़ुलाम ग़ुलामी के शौक़ का
जो ख्वाहिश-ए-आज़ादी से आज़ाद नहीं है


तेरे ही ये ख्याल है और तर्जुमा तेरा
तेरा ही करम है मेरा इरशाद नहीं है

वो सफ़र अहल-ए-मंज़िल पे हो गया "कुबूल"
कोई तलाश जिसकी तेरे बाद नहीं है

Friday, August 10, 2012

नूर

A lot of images delve in the heart. A handful of them melt and flow into poetry:

जिस पे हो जाए मेहरबाँ बेवजह-ओ-बेखबर 
कायनातों की क़ज़ा अटकी तेरी मुस्कान पर 



"   इक नज़र तूने जो डाली पानियों के शोर पे 
साज़ बन बैठी हैं लहरें तेरा चेहरा चूमकर    "




अक्स तेरे चेहरे का मेरी तबस्सुम हो तो हो 
कैसे हंस पाएगी तेरे बिन बता मेरी नज़र 


आसमां को डोरियों से बाँध के रखते हो अब 
और नज़र भी फेर लो तो ये ज़मीं जाए किधर 

बहे सारी उम्र तेरे चेहरे से ऐसे ही नूर 
रोशनाई सी रहें राहें हमारी ता-सफ़र 


 कायनात - world, क़ज़ा - fate, तबस्सुम - smile

Wednesday, May 09, 2012

माज़ी

माज़ी ने फिर मुड़कर देखा, अबके ऐतराज़ नहीं आया,
वो भी गुज़रा हँसते हँसते, मैं भी नाराज़ नहीं आया 

लगता है सालों बाद इन्हें, फिर आंसू कहता हो कोई,
आँखों से रिसते पानी में, ज़िद का रंग आज नहीं आया

मुमकिन है इश्क एक से ही, बाकी हैं गर्ज़-ओ-फ़र्ज़ फक़त,
या प्यार सभी से करने का, मुझको अंदाज़ नहीं आया

अपने ही लफ़्ज़ों को हरदम, ढूँढा तेरी बातों में और 
लगता था मेरे दर ही क्यूँ, ये चारासाज़ नहीं आया

दिन की सो जाने की ख्वाहिश, शब की चाहत थी जगने की,
 कैसे कह दूं कि राहों में, दौर-ए -फ़रियाद नहीं आया 

फिर आज आखिर में याद आया, वो दस्तूर-ए-लफ्ज़-ए-"कुबूल",
जब तक हर पल में न देखा, रम्ज़-ए-इजाज़ नहीं आया 


माज़ी- past, गर्ज़ - selfish motive, चारासाज़  - healer, शब- night, रम्ज़ - secret / understanding, इजाज़ - (God's) benevolence / miracle

Monday, February 13, 2012

इकबाल

हर एक ज़र्रे को रोशन तेरा जमाल करे
किसे ख़बर है कहाँ पर तू क्या कमाल करे


तू हर जगह है मगर फिर भी छुपा रहता है
बशर है खाना-नशीं ख्वाहिश-ए-विसाल करे

मैं ये हर बार देख के भी भूल जाता हूँ
तू वही करता है सभी को जो खुशहाल करे

मार देती है मेरी सोच मुझे हर दफा और
मुझे हर बार जिंदा तेरा इक ख्याल करे

तेरा फ़ज़ल तू नहीं मांगता हिसाब वर्ना
मैं बिक ही जाऊँगा जो तू बस इक सवाल करे

बड़ी ख़ुशी से तूने किया है "कुबूल" मुझे
और एक मैं जो अब भी कोशिश-ए-इकबाल करे


 जमाल- aura, खाना-नशीं - trapped / in darkness/ misguided, ख्वाहिश-ए-विसाल - desire to meet, फ़ज़ल- grace, इकबाल- acceptance

Thursday, January 05, 2012

ख्वाहिश के टुकड़े

कहूं कैसे हुआ मुझको तेरे पास आ के क्या हासिल,
मेरा हर पल है तेरे रूबरू, बतला के क्या हासिल

मेरे मुग़ालते तेरे ही खेलों का नतीजा हैं,
पशेमाँ छोड़ अव्वल, फिर करम फरमा के क्या हासिल

मेरी ख्वाहिश के टुकड़े मुझको खींचें चारसूँ होकर,
तेरी मर्ज़ी है किस जानिब, बता दे तू, कि क्या हासिल

तू मुझसे प्यार करता है, मैं तुझसे प्यार करता हूँ,
तो फिर यूं इम्तिहानों में मुझे बैठा के क्या हासिल

मुझे ऐतबार न आये कि तू अच्छा ही करता है,
तो फिर ये क्यूँ हुआ, वो क्यूँ हुआ, समझा के क्या हासिल

ख़ुशी हो बासबब या बेसबब, दोनों नहीं टिकती,
खुदाई या खुदा को बेवफा ठहरा के क्या हासिल

सबूतों का रहा मोहताज, और बोला यकीं भी है
तो तुझको जानकर, करके "कुबूल", और पा के क्या हासिल


मुग़ालते- Confusions, पशेमाँ- Ashamed, अव्वल- Firstly , चारसूँ - Four directions, जानिब - Direction