Tuesday, April 19, 2016

फ़लसफ़ा

सवाल बुझ गए, सुकून जगमगाया है
तेरे इशारों को जब फ़लसफ़ा बनाया है

कौन कहता है कि हमको खुदा से इश्क़ नहीं
खुदा के करम पे हर बार हक़ जताया है

तू आज़माये नहीं होती है पल पल ये दुआ 
हमीं ने फिर तुझे पल पल में आज़माया है 

देखता है कोई, ये ख़ौफ़ अब नहीं रहता 
जब से नाज़िर नज़ारा बन के साथ आया है 

किसी पे उंगली उठाऊं तो यूं लगे मुझको 
हाथ तेरे ही गिरहबान को लगाया है 

काश उस पल में सारी ज़िन्दगी गुज़र बैठे 
वो पल कि जिसमें तू भरपूर मुस्कुराया है 

नसीब तब हुई है शोहरतें, किरदार में जब 
शौक़ झुकने का हारने का हुनर आया है 

वजूद को तेरे क़दमों में जब झुका बैठे 
वजूद मिलने का तब राज़ समझ आया है 

तेरे एहसास में जहां को मुकम्मल देखा  
हर एक शय है वैसी जिसको जो बनाया है

क़ुबूल दिल को है ज़ुबान फ़क़त सिक्कों की  
 पूछ बैठे तो क्या बताएं कि क्या पाया है