Showing posts with label wait. Show all posts
Showing posts with label wait. Show all posts

Thursday, May 19, 2011

मुन्तज़िर

तसव्वुर पर सिलवटें हैं, तेरे आने का सपना भी
हैं कबसे मुन्तज़िर आंखें, तो लाजिम है बरसना भी

समेटी याद बस तब तक, तेरी क़ुरबत मिली जब तक
बड़ा मुश्किल हुआ तबसे, कोई पल साथ रखना भी

मेरी आँखें भी अब मेरी तरह  ही होश में हैं जो
तेरा दीदार चलता है, नहीं रुकता तरसना भी

अभी तक मेरे दामन में तेरे आंसू सलामत हैं
है इक बारिश में नामुमकिन लहू के दाग बहना भी

तेरे चेहरे को हाथों की लकीरों में तलाशा बस
अजब कि जानता है ये दुआ के लफ्ज़ बुनना भी

ये अच्छा है खुदा पे हक फ़क़त ऐतबार का ही है
कि क्यूँकर आजमायें जब, नहीं आसाँ समझना भी

Friday, January 08, 2010

आहिस्ता

है भीड़ ख्यालों की लेकिन लहर-ए-अल्फाज़ आहिस्ता है
दुनिया का शोर-ओ-गुल है पर मेरी आवाज़ आहिस्ता है

क्यूँ सूरज धीरे जलता है, क्यूँ रात पिघलती है धीरे
क्यूँ बारिश में भीगी बूंदों की भी रफ़्तार आहिस्ता है

परसों के जैसा ही कल था, और आज भी कल के जैसा है
कल तो तेज़ी से गुज़रा था, जाने क्यूँ आज आहिस्ता है

जो चाँद फ़क़त दो हफ्ते में कामिल हो जाया करता था
रुकता बढ़ता, बढ़ता रुकता, चुपचाप बड़ा आहिस्ता है

तेरी आवाजें बहती हैं, मेरे ही घर में रहती हैं
सुनते हैं बुनते हैं ग़ज़लें, दो-चार अश'आर आहिस्ता हैं

दिखता है दिल को जब सुकून, डर भी मिलने आ जाता है
जिसके सदके ये दोनों हैं, तेरी वो बात आहिस्ता है

जब तेरे दर पर है "कुबूल", मेरी आँखों का हर सपना
जगने की क्यूँ बेचैनी है, क्यूँ लगती रात आहिस्ता है

लहर-ए-अल्फाज़ - Flow of words, अश'आर - (plural of ) couplet

Monday, June 08, 2009

जब

ढलेगी रोशनी शमा-ए-दिल आजाद होगी
इसी बादल के साये में वो मुलाक़ात होगी

हमारी हसरतों को पर लगेंगे उल्फत के
हर एक आरजू मचलने को बेताब होगी

हवा जो छू के जायेगी तेरे रुखसारों को
मेरी हलकी सरगोशी भी उसके साथ होगी

ये चाँद घोलेगा मदहोशी स्याह पानी में
फिर आधे आधे से लफ्जों में अपनी बात होगी

तेरी हंसी का नूर बिखरेगा हर जानिब
इसी नशे में तेरी रूह भी शादाब होगी

शब-ए-मक़सूद की तलाश मुकम्मल होगी
मेरी जुबां से इक नयी ग़ज़ल ईजाद होगी

मैं सोच लूँगा अपनी आखिरी तमन्ना भी
भला दिल को भी धड़कने की कुछ याद होगी?

"कुबूल" है मुझे भी इंतज़ार थोडा सा
की खुदा ने सुनी किसी की तो फरियाद होगी

रुखसार- Cheek; जानिब - side, towards; शादाब - Fresh / Rejuvenate.

Thursday, May 01, 2008

विसाल

आंखों में नींद बची है कम, पर रात अभी भी बाकी है,
गीले सूखे अश्कों के संग, हर ख्वाब अभी भी बाकी है

ये आते जाते पेड़ भी अब, थोड़े से रुसवा लगते हैं,
पर इन क़दमों का रुकने से, इनकार अभी भी बाकी है

ये पागल दिल मेरा यूँ तो, कहता है रात मुख्तसर है,
और ख़ुद ही खुश होता है कि, माहताब अभी भी बाकी है

खाली राहों में कुछ साये, अब भी कहते से मिलते हैं,
कि इसी ज़िंदगी में अपना, कुछ साथ अभी भी बाकी है

खिड़की से अंधियारी सूनी, गलियों का मंज़र दिखता है,
इस दिल में नूर के क़दमों की आवाज़ अभी भी बाकी है

मेरी राहों के जैसा ही, ये शहर बियाबां लगता है,
बस उस दर पे इक जलता हुआ, चिराग अभी भी बाकी है

शब के जाने की आहट है, और शोर धडकनों का भी है,
साया सा उनका दिखता है, दीदार अभी भी बाकी है ।


मुख्तसर - Short lived, माहताब - moon, नूर - light, बियाबां - (dark, lonely) forest, सोया - doorstep, शब - night

विसाल - Union

Friday, February 01, 2008

मुलाक़ात

दिखने लगा छुपा हुआ वो प्यार भी हल्का सा,
आंखो में छलक आया है इक़रार भी हल्का सा

बस ख़त्म हो चला था, जितना था सब्र मन में,
बहुत हुआ लगा ये इंतज़ार भी हल्का सा

तेरे नूर का यही रंग, तेरे अक्स को तलब था,
चढ़ने को रूह पर मेरी, तैयार भी हल्का सा

सोचा था कि इतना बेहतरीन होगा ये पल,
खुद पर से हट रह है इख्तियार भी हल्का सा

ख़ुशी कहूं, या क्या कहूं, एहसास को मैं अपने,
लगता है मेरे ख़्वाबों के ये पार भी हल्का सा

पर ये तो बस आगाज़ ही हुआ है उड़ने का,
होने का ख़त्म, हो इंतज़ार भी हल्का सा

हर रोज़ नए आसमां मिलें एहसासों को,
बुझ गयी प्यास, लगे इक बार भी हल्का सा

"कुबूल" हो दुआ मेरी बस एक मेरे मौला,
मांगू नहीं, तुझे जो नागवार भी हल्का सा