Thursday, May 01, 2008

विसाल

आंखों में नींद बची है कम, पर रात अभी भी बाकी है,
गीले सूखे अश्कों के संग, हर ख्वाब अभी भी बाकी है

ये आते जाते पेड़ भी अब, थोड़े से रुसवा लगते हैं,
पर इन क़दमों का रुकने से, इनकार अभी भी बाकी है

ये पागल दिल मेरा यूँ तो, कहता है रात मुख्तसर है,
और ख़ुद ही खुश होता है कि, माहताब अभी भी बाकी है

खाली राहों में कुछ साये, अब भी कहते से मिलते हैं,
कि इसी ज़िंदगी में अपना, कुछ साथ अभी भी बाकी है

खिड़की से अंधियारी सूनी, गलियों का मंज़र दिखता है,
इस दिल में नूर के क़दमों की आवाज़ अभी भी बाकी है

मेरी राहों के जैसा ही, ये शहर बियाबां लगता है,
बस उस दर पे इक जलता हुआ, चिराग अभी भी बाकी है

शब के जाने की आहट है, और शोर धडकनों का भी है,
साया सा उनका दिखता है, दीदार अभी भी बाकी है ।


मुख्तसर - Short lived, माहताब - moon, नूर - light, बियाबां - (dark, lonely) forest, सोया - doorstep, शब - night

विसाल - Union