Sunday, October 12, 2014

रहम

दिलों के शोर थम गए जो ज़िक्र-ए-यार हुआ
ज़मीर फिर हुए रोशन जो ये दीदार हुआ

ज़रा ज़रा है तेरी दीद भी मय के जैसी 
जिसे मिली ये वो फिर और तलबगार हुआ 

तेरे एहसास का इक ये भी असर है दिल पर 
हुई खता तो ये पल में ही शर्मसार हुआ 

बना हुआ था दिल पे बोझ तेरे आने तक 
मेरे गुनाहों का पहाड़ फिर ग़ुबार हुआ 

हुई ख़ुशी तेरे कदमों में अब तो आएगा 
दिल-ए-नादान थक के जब दिल-ए-लाचार हुआ 

ज़हन की देखिये फ़ितरत ये दिए जाने की
किसी से राय भी मिली तो नागवार हुआ 

"क़ुबूल" कर न सका तुझको लाख चाह के भी 
तेरा रहम, तेरे रहम पर ऐतबार हुआ 

Monday, September 15, 2014

निशाँ

तमाम उम्र साथ ही रहे ज़ख्मों के निशाँ
राहतें बक्श के मिट गए मरहमों के निशाँ

मसल रहा था  जब इक फूल अपने पाँव तले
दिखे थे खार पर भी आपके लबों के निशाँ

बताएं क्या कि क्या मिला निगाह मिलने से
देख रुख़्सार पर हैं मीठे पानियों के निशाँ

हज़ार दफा सुना आपका वो एक लफ्ज़
मेरे हाथों में आपकी हथेलियों के निशाँ

वही परवाज़ जिनकी उफ़क़ और फ़लक  तुम हो
छोड़ जाते हैं हवाओं पे भी परों के निशाँ

आपको ना-"क़ुबूल" करके हर दफा खोया
तलाश लेते हैं फिर आपके कदमों के निशाँ

खार  - thorn, उफ़क़ - horizon, फ़लक - sky

Wednesday, August 27, 2014

आईना

ख़त्म दिल से बुरे अच्छे की हर पहचान हो  जाए
ये दिल वो फिर से पहले की तरह नादान हो जाए

तुझे कश्ती में क्यूँ  ढूँढूँ, अगर मझधार भी तू है
ये दोनों एक ही हैं, मुझको ये पहचान हो जाए

सभी का ही भला मैं मांगता तो हूँ मगर तब तक
किसी के हाथ न जब तक मेरा नुकसान हो जाए

खुदा ने हुस्न जो बख्शा, मुबारक़ है, मगर तब ही
नज़र आने का दिल से ख़त्म जब अरमान हो जाए

कहाँ मुमकिन है कि हर चाह दिल की यूं ही मिट जाए
शहनशाह वो बने जिस पर तेरा एहसान हो जाए

समझ आ जाए मुझको कि ये तय होगा ठहरने से
तो मैं से तू का ये मुश्किल सफ़र आसान हो जाए

बना रखा है कबसे अपने लफ्ज़ों को नक़ाब अपना
मेरा आईना हों ग़ज़लें, मेरी दास्तान हो जाए

तेरे दरबार में खुद ही "क़ुबूल" अपने गुनाह कर ले
चलें पाक अश्क़ और "रोशन" मेरा ईमान हो जाए