मेरी नज़र पे नज़र-ए-मेहर बनाये रखना
अपने एहसान तसव्वुर में बसाये रखना
अपने एहसान तसव्वुर में बसाये रखना
मिलेगा या कि नहीं इस से बेसबब होकर
तुझी से मांगू सिलसिला ये बनाये रखना
हमें बहुत अज़ीज़ है ये दोस्ती तुझसे
तू ही निभा रहा है तू ही निभाये रखना
तू ही निभा रहा है तू ही निभाये रखना
तू मुस्कुराया था मेरी ही इक शरारत पे
मेरे लिए मुग़ालता ये बनाये रखना
तेरे सिवा न कोई देता है न लेता है
सर-ए-बाज़ार भी सिफ़र पे टिकाये रखना
अकल को दी है जो तासीर दौड़ने की तो
न गर्ज़ से न फ़र्ज़ से तेरी इबादत हो
मुझे बेसाख्ता सजदों में लगाए रखना
नहीं मुमकिन तेरी रहमत को बयां कर पाना
तू फिर भी ऐसी कोशिशों में लगाए रखना
अकल को दी है जो तासीर दौड़ने की तो
अब इसका रुख भी अपनी सिम्त बनाये रखना
न गर्ज़ से न फ़र्ज़ से तेरी इबादत हो
मुझे बेसाख्ता सजदों में लगाए रखना
नहीं मुमकिन तेरी रहमत को बयां कर पाना
तू फिर भी ऐसी कोशिशों में लगाए रखना
"क़ुबूल" तो नहीं कर पाया हूँ तुझे अब तक
तू अपनी महफिलों में फिर भी बिठाये रखना
फ़ज़ल - grace, सिफ़र - zero, सिम्त - towards/near, मुग़ालता - illusion