Thursday, August 11, 2011

सोच

ये दिल क्यूँ सोच में दौड़े यहाँ वहाँ के लिए
मेरे साहिब की सोच सारे ही जहां के लिए

अगर ये गुल खिलें इक दूसरे के खिलने से
और एहतियाज क्या हसीन गुलिस्ताँ के लिए

तेरे ख्यालों में सबसे अज़ीम होगा ये
हर इंसान यूँही सोचे हर इन्सां के लिए
 
मेरे कदमों को हो ख्याल फ़क़त चलने का
सोच राहों की छोड़नी है रहनुमां के लिए

"कुबूल" हो सके मुझे हद-ए-मीनार-ए-मसीद 
 न आरज़ू हो किसी और आसमां के लिए

एहतियाज- requirement, अज़ीम- highest, हद-ए-मीनार-ए-मसीद - Zenith of the minaret in the mosque


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