यूं तो मुरशद पे ही कुर्बान जुबां होती है
दिल-ए-ग़मगीन तेरी चाह कहाँ होती है
कभी निगाह में बस हसरतों का मजमा और
कभी तस्लीम तकाज़े का निशाँ होती है
तू भी होता है बेसुकून सा तन्हाई में
मेरी भी बंदगी शिकवों में बयाँ होती है
है ये मालूम कि खालिक है निगेहबां फिर भी
तेरी निगाह-ए-पाक-ओ-हया कहाँ होती है
ख्याल रहता है फैलाने का दामन को पर
सुराख कितने है ये होश कहाँ होती है
अमीर दुनिया में होने की चाह जिसको है
बिके इस दर पे वो औकात कहाँ होती है
तुझे सुनाया हाल-ए-दिल तुझे "कुबूल" भी हो
तेरे एहसास की हर सांस अज़ाँ होती है
मजमा- gathering, तस्लीम- Salutation / respect, तकाज़े- demands, निगेहबां- is watching, निगाह-ए-पाक-ओ-हया - pious vision and dignity, अज़ाँ - call for prayer.
2 comments:
Awesome Deepak ji... Awesome ... Masha-allah aap to kamal hoo
line
ख्याल रहता है फैलाने का दामन को पर
सुराख कितने है ये होश कहाँ होती है
to katal kar gayee...
धन निरंकार जी...
बेहद खूबसूरत कलाम है, आप के लिखे शब्द पढ़ कर सिहरन सी उठ गई, सीधा लिभ जुड़ गई निरंकार प्रभु से...
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