Monday, September 15, 2014

निशाँ

तमाम उम्र साथ ही रहे ज़ख्मों के निशाँ
राहतें बक्श के मिट गए मरहमों के निशाँ

मसल रहा था  जब इक फूल अपने पाँव तले
दिखे थे खार पर भी आपके लबों के निशाँ

बताएं क्या कि क्या मिला निगाह मिलने से
देख रुख़्सार पर हैं मीठे पानियों के निशाँ

हज़ार दफा सुना आपका वो एक लफ्ज़
मेरे हाथों में आपकी हथेलियों के निशाँ

वही परवाज़ जिनकी उफ़क़ और फ़लक  तुम हो
छोड़ जाते हैं हवाओं पे भी परों के निशाँ

आपको ना-"क़ुबूल" करके हर दफा खोया
तलाश लेते हैं फिर आपके कदमों के निशाँ

खार  - thorn, उफ़क़ - horizon, फ़लक - sky

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