दिलों के शोर थम गए जो ज़िक्र-ए-यार हुआ
ज़मीर फिर हुए रोशन जो ये दीदार हुआ
ज़मीर फिर हुए रोशन जो ये दीदार हुआ
ज़रा ज़रा है तेरी दीद भी मय के जैसी
जिसे मिली ये वो फिर और तलबगार हुआ
तेरे एहसास का इक ये भी असर है दिल पर
हुई खता तो ये पल में ही शर्मसार हुआ
बना हुआ था दिल पे बोझ तेरे आने तक
मेरे गुनाहों का पहाड़ फिर ग़ुबार हुआ
हुई ख़ुशी तेरे कदमों में अब तो आएगा
दिल-ए-नादान थक के जब दिल-ए-लाचार हुआ
ज़हन की देखिये फ़ितरत ये दिए जाने की
किसी से राय भी मिली तो नागवार हुआ
"क़ुबूल" कर न सका तुझको लाख चाह के भी
तेरा रहम, तेरे रहम पर ऐतबार हुआ
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