शर्मसारी से निगाहों को झुकाया होगा
मेरा शुबा जब इनके रूबरू आया होगा
प्यार का एक लफ्ज़ भी असर दिखाता है
कहीं दीवार में दरार तो लाया होगा
सलीका उसका मुझसे जुदा है तो बात क्या है
उसे वही तो उसके घर ने सिखाया होगा
सवाली दिल कई सवाल लिए फिरता है
हज़ार बार जिन्हें लिख के मिटाया होगा
कभी तलवार रोशनी को काट पायी नहीं
अग़रचे खून चराग़ों का बहाया होगा
तौर सजदे के तो जमात सिखा देती है
असर दुआ में अक़ीदत से ही आया होगा
चला रहा है कौन कश्तियाँ समंदर में
हवा ने रूख बदल के याद दिलाया होगा
पास आ कर भी भटकना इसी को कहते हैं
"कि ख़ुदा को भी किसी ने तो बनाया होगा"?
उम्र भर आज़मा के भी क़ुबूल कर न सका
कोई मुझसा भी इस जहां में ख़ुदाया होगा
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