हर लम्हा तुम्हे रूबरू रखने की चाह में
इज़हार बंदगी का है वादा-निबाह में
रहबर का फ़क़त साथ छूट जाने के सिवा
और दूसरी मुश्किल कोई नहीं है राह में
करते नहीं वो सुबह के आने का इंतज़ार
रोशन-मीनार जलते हैं शब-ए-स्याह में
हर रंग में तुम्हारा फज़ल आ रहा नज़र
मिलती है तुम्हारी निगाह हर निगाह में
पहचान जिन्हें हो गयी महफ़िल के अदब की
पढ़ते हैं छिपा हुक्म तुम्हारी सलाह में
उनको ही खुदा की रज़ा हो आई है क़ुबूल
दिख जाती है जिन्हें ये और के गुनाह में
1 comment:
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