Friday, December 24, 2010

ईमान

ज़रा मुश्किल है दिल की बात का यूं तो जुबां होना
नहीं मुमकिन वफ़ा की सारी रस्मों का गुमां होना

नहीं दिल को थी कोई आरज़ू दुनिया की दौलत की
दिखी तेरी ख़ुशी बिकती, गिला था दाम न होना

जो है ऐतबार तो फिर यूं सबूतों की तलब क्यूँ हो
अगर है भी तो लाज़िम है, बखौफ़-ओ-पशेमां होना

कभी सुनते हैं उल्फत नाम है बेगर्ज़  होने का
कभी कहते हैं नादानी है कोई गर्ज़ न होना

कहे कोई क्यूँ मुझसे अपने सब वादे भुलाने को
हैं ये सारे सितम बेहतर, या खुद से बे-ईमां होना ?

नहीं ज्यादा समझ राह-ए-मुहब्बत की तो क्या कीजे
नहीं रुकता तेरी सूरत पे दिल का आशना होना

 लाज़िम - Necessary , बखौफ़-ओ-पशेमां - Fearful and ashamed, बेगर्ज़ - selfless, गर्ज़- selfish motive

Monday, December 20, 2010

Fir

फिर से  उन्ही अदाओं की ज़ंजीर मुझे दे
फिर तेरे फ़ज़ल  से बनी तासीर मुझे दे

हँसते हुए थी तूने कभी मुझपे अयाँ की
मखमल में रखी मेरी वो तकदीर मुझे दे

क्या खो गया कि इस क़दर मस्कीन मैं हुआ
कुछ तो सुराग मेरे अहल-ए-पीर मुझे दे


आँखों को बंद करने की सब कोशिशें नाकाम
क्या जाने कब दीदार मेरी हीर मुझे दे

बे-इख्तियार न हो मेरा हाथ फिर कभी
ना कभी ऐसी दानिश-ए-शरीर मुझे दे

ये नज़र आरज़ू में आज फिर से है उठी
इस आरज़ू को बना के तस्वीर मुझे दे

कि फ़क़त तख़ल्लुस  में न मौजूद हो खुदा
कर पाऊं सब कुबूल वो ज़मीर मुझे दे


----------
फ़ज़ल - Good attribute / goodwill,  तासीर - Nature, अयाँ - Bestow, मस्कीन - Poor, अहल-ए-पीर - Highest prophet, बे-इख्तियार - Out of control, दानिश-ए-शरीर - Disobedient wisdom, फ़क़त - only, तख़ल्लुस  - Pen name.

Friday, January 08, 2010

आहिस्ता

है भीड़ ख्यालों की लेकिन लहर-ए-अल्फाज़ आहिस्ता है
दुनिया का शोर-ओ-गुल है पर मेरी आवाज़ आहिस्ता है

क्यूँ सूरज धीरे जलता है, क्यूँ रात पिघलती है धीरे
क्यूँ बारिश में भीगी बूंदों की भी रफ़्तार आहिस्ता है

परसों के जैसा ही कल था, और आज भी कल के जैसा है
कल तो तेज़ी से गुज़रा था, जाने क्यूँ आज आहिस्ता है

जो चाँद फ़क़त दो हफ्ते में कामिल हो जाया करता था
रुकता बढ़ता, बढ़ता रुकता, चुपचाप बड़ा आहिस्ता है

तेरी आवाजें बहती हैं, मेरे ही घर में रहती हैं
सुनते हैं बुनते हैं ग़ज़लें, दो-चार अश'आर आहिस्ता हैं

दिखता है दिल को जब सुकून, डर भी मिलने आ जाता है
जिसके सदके ये दोनों हैं, तेरी वो बात आहिस्ता है

जब तेरे दर पर है "कुबूल", मेरी आँखों का हर सपना
जगने की क्यूँ बेचैनी है, क्यूँ लगती रात आहिस्ता है

लहर-ए-अल्फाज़ - Flow of words, अश'आर - (plural of ) couplet