Monday, December 20, 2010

Fir

फिर से  उन्ही अदाओं की ज़ंजीर मुझे दे
फिर तेरे फ़ज़ल  से बनी तासीर मुझे दे

हँसते हुए थी तूने कभी मुझपे अयाँ की
मखमल में रखी मेरी वो तकदीर मुझे दे

क्या खो गया कि इस क़दर मस्कीन मैं हुआ
कुछ तो सुराग मेरे अहल-ए-पीर मुझे दे


आँखों को बंद करने की सब कोशिशें नाकाम
क्या जाने कब दीदार मेरी हीर मुझे दे

बे-इख्तियार न हो मेरा हाथ फिर कभी
ना कभी ऐसी दानिश-ए-शरीर मुझे दे

ये नज़र आरज़ू में आज फिर से है उठी
इस आरज़ू को बना के तस्वीर मुझे दे

कि फ़क़त तख़ल्लुस  में न मौजूद हो खुदा
कर पाऊं सब कुबूल वो ज़मीर मुझे दे


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फ़ज़ल - Good attribute / goodwill,  तासीर - Nature, अयाँ - Bestow, मस्कीन - Poor, अहल-ए-पीर - Highest prophet, बे-इख्तियार - Out of control, दानिश-ए-शरीर - Disobedient wisdom, फ़क़त - only, तख़ल्लुस  - Pen name.

2 comments:

Anonymous said...

Wonderful..

al said...

pura to samajh mein nahi aaya .. par shabdo in gehrai dekh ke aesa lagta hai ki bahut acha hai


btw regular reads mein blog ka link galat hai its http://zemann.blogspot.com/