Friday, December 24, 2010

ईमान

ज़रा मुश्किल है दिल की बात का यूं तो जुबां होना
नहीं मुमकिन वफ़ा की सारी रस्मों का गुमां होना

नहीं दिल को थी कोई आरज़ू दुनिया की दौलत की
दिखी तेरी ख़ुशी बिकती, गिला था दाम न होना

जो है ऐतबार तो फिर यूं सबूतों की तलब क्यूँ हो
अगर है भी तो लाज़िम है, बखौफ़-ओ-पशेमां होना

कभी सुनते हैं उल्फत नाम है बेगर्ज़  होने का
कभी कहते हैं नादानी है कोई गर्ज़ न होना

कहे कोई क्यूँ मुझसे अपने सब वादे भुलाने को
हैं ये सारे सितम बेहतर, या खुद से बे-ईमां होना ?

नहीं ज्यादा समझ राह-ए-मुहब्बत की तो क्या कीजे
नहीं रुकता तेरी सूरत पे दिल का आशना होना

 लाज़िम - Necessary , बखौफ़-ओ-पशेमां - Fearful and ashamed, बेगर्ज़ - selfless, गर्ज़- selfish motive

2 comments:

Unknown said...

What an amazing collection of poems. You are truly gifted with grace and art of language.

dhan nirankar ji.

- Sanjay

Sandeep said...

Awesome mharaj.........Almighty has gifted you with gr8 art and thinking...No words to praise...Truly amazing...